Mutual Funds:म्यूचुअल फंड में पैसे लगाते समय भूलकर भी ना करें यह गलतियां,वरना फायदे की जगह हो जाएगा आप को बड़ा नुकसान

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Mutual Funds: म्यूचुअल फंड्स को आम निवेशकों के लिए कम जोखिम में बेहतर रिटर्न हासिल करने का लोकप्रिय जरिया माना जाता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप म्यूचुअल फंड में आंखें बंद करके पैसे लगा सकते हैं. निवेश कहीं भी करना हो, कोई भी फैसला पूरी सावधानी और जांच-परख करने के बाद ही करना चाहिए. म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते समय भी इन बातों पर गौर करना जरूरी है, वरना फायदे की जगह नुकसान हो सकता है.

आपके निवेश का मकसद क्या है?

निवेश से जुड़े किसी भी फैसले से पहले अपने आप से एक सवाल जरूर करें. सवाल ये कि आपके इस निवेश का लक्ष्य या खास मकसद क्या है? अगर आप इस बारे में सोचे बिना निवेश करेंगे तो ऐसे विकल्पों में पैसे लगा सकते हैं, जो आपकी जरूरत के हिसाब से सही नहीं हैं. मिसाल के तौर पर अगर आपको दो साल बाद अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए या फिर नई कार खरीदने के लिए 2 लाख रुपयों की जरूरत पड़ने वाली है, तो आप उसी हिसाब से हर महीने रिकरिंग डिपॉजिट में पैसे जमा करने के बारे में सोच सकते हैं. या फिर किसी ऐसे एफडी में निवेश कर सकते हैं, जिसकी मैच्योरिटी आपकी जरूरत से मेल खाती हो. अगर आपने इस बारे में सोचे बिना इक्विटी म्यूचुअल फंड में पैसे लगा दिए, तो हो सकता है दो साल बाद आपको बाजार की उथल-पुथल के कारण अपनी मनचाही रकम न मिल पाए.

इसी तरह अगर आपको 10-15 या 20 साल बाद होने वाले रिटायरमेंट के लिए निवेश करना है, तो डिविडेंड ऑप्शन वाला म्यूचुअल फंड आपके लिए गलत विकल्प साबित हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आपने म्यूचुअल फंड से डिविडेंड के रूप में मिलने वाली रकम को नियमित रूप से दोबारा निवेश नहीं किया, तो लॉन्ग टर्म निवेश के बावजूद आपको कंपाउंडिंग का लाभ नहीं मिलेगा. साथ ही इक्विटी फंड्स पर लागू होने वाला डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स भी आपके निवेश में सेंध लगाता रहेगा. अगर आपको रिटायरमेंट के लिए लॉन्ग टर्म निवेश करना है, तो म्यूचुअल फंड के डिविडेंड ऑप्शन की जगह ग्रोथ ऑप्शन बेहतर रहेगा

बाजार की चाल का अंदाजा लगाने के चक्कर में न पड़ें
आम निवेशकों को लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट से जुड़े फैसले करते समय बाजार की चाल का सटीक अंदाजा लगाने के चक्कर में ज्यादा नहीं पड़ना चाहिए. बल्कि सही म्यूचुअल फंड का चुनाव करने के बाद उसमें नियमित निवेश पर ध्यान देना चाहिए. सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) इसका सबसे बेहतर तरीका है. इससे न सिर्फ नियमित निवेश का लाभ मिलता है, बल्कि बाजार के उतार-चढ़ावों के बीच संतुलित रिटर्न पाने में भी मदद मिलती है. ऐसा करने की जगह अगर आप बाजार के तलहटी पर पहुंचने पर निवेश करने और फिर पीक पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाने का ख्वाब देखेंगे, तो कामयाबी मिलने की गुंजाइश बहुत ही कम रहेगी. ऐसा इसलिए, क्योंकि बाजार कब अपने सबसे निचले स्तर पर है और कब पीक पर, ये पक्के तौर पर किसी को पता नहीं होता. इसीलिए कहा जाता है कि लगातार नियमित रूप से निवेश करना और अपनी पूंजी को बढ़ने के लिए पूरा टाइम देना, बाजार की सही टाइमिंग से ज्यादा जरूरी है.

सिर्फ पिछले रिटर्न के आधार पर न करें फैसल

बहुत से निवेशक म्यूचुअल फंड का चुनाव सिर्फ उसके पुराने रिटर्न को देखकर करते हैं. जिस फंड का पुराना रिटर्न सबसे ज्यादा होता है, उसी में पैसे लगा देते हैं. लेकिन ऐसा करना हमेशा सही नहीं हो सकता. ब्याज दरों के रुझान से लेकर किसी इंडस्ट्री से जुड़े बदलावों और देश-दुनिया के मैक्रो इकनॉमिक डेटा तक कई ऐसे फैक्टर होते हैं, जो म्यूचुअल फंड्स के प्रदर्शन पर असर डालते हैं. यही वजह है कि पिछले वर्षों के बेहतर प्रदर्शन को आने वाले दिनों के बेहतर रिटर्न की गारंटी नहीं माना जा सकता.

बहुत ज्यादा स्कीम्स में निवेश करना सही नहीं

कई निवेशकों को लगता है कि अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करने के लिए एक साथ बहुत सारे म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना जरूरी है. हमें ये बात याद रखनी चाहिए कि दरअसल हर म्यूचुअल फंड स्कीम अपने आपमें एक डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो है, जिसमें अलग-अलग तरह के इंस्ट्रूमेंट्स शामिल रहते हैं. बहुत ज्यादा स्कीम्स में निवेश करने पर आपके लिए उन्हें अच्छी तरह समझना और ट्रैक करना मुश्किल हो सकता. बेहतर यही होगा कि अच्छी तरह जांच-परख करके दो-तीन अच्छी म्यूचुअल फंड स्कीम्स को चुनें और उनमें नियमित रूप से निवेश करते रहें.

स्कीम से जुड़े रिस्क की अनदेखी न करें

सीधे इक्विटी में निवेश करने के मुकाबले म्यूचुअल फंड में निवेश करना आम तौर पर कम जोखिम वाला होता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सभी म्यूचुअल फंड में एक बराबर रिस्क होता है. जिस तरह डेट फंड के मुकाबले इक्विटी फंड में ज्यादा रिस्क होता है, उसी तरह अलग-अलग इक्विटी फंड में जोखिम की आशंका भी अलग-अलग होती है. इसलिए सही स्कीम का चुनाव करते समय जोखिम उठाने की अपनी क्षमता यानी रिस्क प्रोफाइल को भी जरूर ध्यान में रखें. बाजार में तेजी के दौर में कई बार ऐसे निवेशक भी ज्यादा रिटर्न के लालच में इक्विटी फंड की तरफ चले जाते हैं, जिनकी रिस्क लेने की क्षमता बेहद कम है. इसी तरह ब्लूचिप फंड्स या लार्ज कैप फंड्स के मुकाबले मिड-कैप या स्मॉल कैप फंड्स में जोखिम और भी ज्यादा होता है. इसीलिए निवेश का फैसला करते समय जोखिम उठाने की अपनी क्षमता को कभी न भूलें.

पूरी रकम एक साथ न लगाएं

निवेशकों को म्यूचुअल फंड में अपनी पूरी रकम एक साथ लगाने से बचना चाहिए. अगर आपके पास निवेश के लिए एक साथ मोटी रकम मौजूद है, तो भी उसे धीरे-धीरे करके निवेश करना बेहतर रहता है. आप इसके लिए सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान (STP) की मदद ले सकते हैं. एसटीपी भी एसआईपी की तरह ही काम करता है, जिसमें आपकी रकम का कुछ हिस्सा हर महीने आपकी बताई स्कीम में निवेश किया जा सकता है. इससे आपके निवेश को बाजार की तेज उथल-पुथल के असर से बचाने में मदद मिलती है.

समय-समय पर रिव्यू करना न भूलें

म्यूचुअल फंड्स दरअसल अलग-अलग तरह के एसेट क्लास में निवेश करने का जरिया हैं. इनके माध्यम से आप गोल्ड, इक्विटी, बॉन्ड जैसे अलग-अलग विकल्पों में पैसे लगाते हैं. लेकिन निवेश करने के बाद उसे पूरी तरह भूल न जाएं. अपने फंड्स को लगातार ट्रैक करते रहें और बीच-बीच में उनके प्रदर्शन की समीक्षा भी करते रहें. अगर कोई स्कीम बाजार की तुलना में लगातार कम रिटर्न दे रही है, तो आप उसकी जगह किसी बेहतर स्कीम में निवेश का फैसला भी कर सकते हैं. अगर आपने ऐसा नहीं किया, तो लंबे समय में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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